हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, April 12, 2015

गढ़वाली कविता : वूंल बोलि

" वूंल बोलि "


वूंल बोलि 
भैज्जि जक्ख पांणि नि 
वक्ख पांणि पहुँचौला
जक्ख सड़क नि 
वक्ख गाडी  पहुँचौला 
जक्ख अस्पताल नि 
वक्ख डाक्टर  पहुँचौला
जक्ख इस्कूल  नि 
वक्ख मास्टर पहुँचौला 
जक्ख कुछ नि  च 
ब्वै का सौं वक्ख 
सब्बि  धाणी पहुँचौला
हमर  पाणि कन्नै  पैटि 
हमर सड़क कक्ख बिरड़ 
हमर डाक्टर बीमार च कि व्यबस्था 
हमर नौना फेल हूंयीं  की मास्टर 
ब्वै का सौं हम नि ज़णदा  
पर हाँ 
वू  दिल्ली -देहरादूण  तक पौंची गयीँ 
वूं  मा  सड़क ,पाणि ,गाडी ,डाक्टर ,मास्टर 
 सब्बि धाणी  छीं  आज 
इत्गा त हम बी जाणि ही ग्यो 



रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी ,सर्वाधिकार  सुरक्षित 

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