हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Sunday, April 12, 2015

विश्व प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का गढ़वाली भाषा अनुवाद श्रृंखला : कतील शफ़ाई (3)

" कतील शफ़ाई " की शायरी का गढ़वाली भाषा अनुवाद
 " कतील शफ़ाई " को सादर समर्पित उनकी एक शायरी  का गढ़वाली भाषा अनुवाद
                    अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी 


कक्खी  कुई औडळ  ना आ म्यारा बिद्रोल से 
डरदु  छौं  मी  त्यारा मुल्क़ै रस्मौं -रिवाज से 

लोग ब्वळदीं एक आदिमल अफ्फी  कैर यालि अप्डी  मौत 
वु बदला लिंणा जाणु  छाई बल ये समाज  से 

लिंण प्वाडलू प्रेम मा वफ़ा छोड़िक काम 

परहेज ये रोग मा  च बढ़िया ईलाज से 


ज्यू ब्वळद  वींका बाटा मा  रौं  खडू 
ये चक्कर मा हम बी गाई  काम -काज से 

क्वी नशा मा नी छुपौन्दू  सच थेय "क़तील "'
शामिल  मी बी छौं ,कछडियूं मा  झाँझीयूँ की आज  से 

अनुवादक : गीतेश सिंह नेगी

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