हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Thursday, January 6, 2011

गढ़वाली लेख (व्यंग ) : हल्या नी मिलदु


                                                          हल्या नी मिलदु

झंकरी बोडी  कु नौनु प्रदेश भट्टेय बाल-बचौं दगडी १० साल बाद  गढ़वाल घूमणा  कु अन्यु  छाई , कुछ दिन खुण इन्न लग्णु छाई की जन्न बोडी फर फिर से  जान आये ग्ये व्होली ,नाती नतिणयु दगडी बोडी  खुश दिखेणी छाई और  नौना -बाला   भी पहली बार स्यारा-पुन्गडा खल्याण , नयार,बल्द-बखरा  और सुन्दर हैरा-भैरा डांडा देखि की भोत ही खुश हुन्या छाई,
बुना छाई - दादी त्या  अब हम यक्खी लहेंगे ?
हाँ नौना की ब्वारी जरूर अन्गरौं  की सी खईं सी लगणी  छाई ?
नौना ल बवाल ब्वे अब ती खुण   गढ़वाल मा क्यां की खैर च ? सड़क -पाणि,बिज़ली ,राशन -पाणि की दूकान ,डिश -टीवी ,फ्रिज ,गाडी सब्भी ता व्हेय  गिन गौं मा अब | आराम ही आराम चा त्वे खुण ब्वे अब त़ा

बस ब्बा बाकी त़ा सब ठीक चा पर अज्काल गढ़वाल मा "हल्या नी मिलदु " अब
बोतल देय की भी ना

रचनाकार : गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित )

No comments:

Post a Comment