हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, December 31, 2010

गढ़वाली कविता (व्यंग ) : २०१० का आंसू

छेन्द स्वयंबर  का निर्भगी  राखी
बिचरी  येखुली रह ग्याई
तमशु देखणा की "लाइव " चुप-चाप
हम्थेय भी अब सैद आदत व्हेय ग्याई
भाग तडतूडू  छाई कन्नू बल कसाब कु ,
वू भी अब अतिथि देव व्हेय  ग्याई
लोकतंत्र की हुन्णी चा रोज यख हत्या ,
इन्साफ अध रस्ता म़ा बल अध्-मोरू व्हेय  ग्याई
कॉमन- वेल्थ का छीं आदर्श  भ्रष्ट ,
सरकार बल  राजा की गुलाम  व्हेय  ग्याई
मन छाई घंगतोल म़ा की क्या जी करूँ " गीत ",
तबरी अचाणचक से बल  शीला ज्वाँन व्हेय ग्याई
घोटालूँ कु २०१० सुरुक सुरुक मुख छुपे की ,
अंतिम सांस लींण  ही वलु  छाई,
की तबरी विक्की बाबू की हवा लीक व्हेय  ग्याई ,
" गीत "आँखों  म़ा देखि की अस्धरा लोगों का ,
अब कुछ और ना  सोची  भुल्ला ?
२०१० कु  निर्भगी प्याज  जांद जांद युन्थेय भी आखिर रूवे ग्याई
२०१० कु  निर्भगी प्याज  जांद जांद युन्थेय भी आखिर रूवे ग्याई

रचनाकार : गीतेश सिंह  नेगी  ( सिंगापूर प्रवास से ,सर्वाधिकार सुरक्षित )

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