हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Thursday, November 25, 2010

आओ तिलांजलि दें

बेबस हालातों  को
खामोश बातों  को
मौन अपराधों को
भ्रष्ट सरकारों  को
चीखते घोटालों को
अंधे कानून की
गूंगी-बहरी अदालतों को
आओ तिलांजलि दें !

गिरते जमीर की
उठती दिवारों को
बिखरते चरित्र की
ढहती आधुनिक इमारतों को
बिकती इंसानियत के
सस्ते बाजारों को
लुटते गरीबों की
डरी सहमी सी आवाजों को
आओ तिलांजलि दें !


रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी (सिंगापूर प्रवास से ,दिनांक २५.११.२०१०, सर्वाधिकार सुरक्षित )

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