हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Friday, October 15, 2010

गढ़वाली कविता : उक्ताट


अब्ब्ही भी बगत चा
आवा हम दगडी चितेई जौला
न्थरी भोल दगडी  फट्टा  सुखोला
पहली कारू छाई एक आन्दोलन घमासान
व्हे  गयीं कत्गा शहीद, खाई   की छाती और कपाल फ़र लट्ठा -गोली
तब हम ही  जीतो  ,किल्लेय की तब  हम एक छाई
भोल  एक और आन्दोलन ना करण प्वाडू कक्खी  फिर हम्थई ?
आन्दोलन अपड़ा आप थेय बचाणा कु
आन्दोलन अप्ड़ी भाषा और रिवाज़ों थेय सम्लाणाकू
आन्दोलन थोल म्य्लों थेय बचाणा कु
आन्दोलन अरसा,स्वआला, मीठू भात  बचाणा खूण
आन्दोलन ढोल दम्मो  ,निसाणं और तुर्री थेय बचाणा खूण
आन्दोलन घार- गौं और गुठ्यारों थेय बचाणा खूण
आन्दोलन  हैल- दंदलू  दाथि और निसुड़ थेय बचाणा खूण
गीत बाजूबंद,थडिया ,चोफ़ुला और मांगलों  थेय बचाणा खूण
बांज ,बुरांस ,हिसोला -बेडू ,तिम्ला और काफल  थेय बचाणा खूण
पर तब भोत मुंडारु व्हे जाण छुच्चो
किल्लेय ?
जरा स्वाचा?
कैमा जाण और कई दगड़ लड़ण वा  लडई ?
कन क्य्ये    जितण, हेर्री की अपणाप से त्भ?
क्या बोलण की  नि के साकू   इंसाफ हमुल अप्ड़ी ही  जन्म भूमि  दगडी  ?
नि सँभाल साका हम अप्ड़ी ही संस्कृति थेय ?
तब नि लग्गणा  तुम से वू जन गीत भी आन्दोलन का
जू लगायी और कन कन के पाला पोसा छायी
उंल  जो आज बन गयीं देबता आगास मा
भेंट गईं हम्थेय एक विरासत
जू नि पचणी चा  आज   हमसे ?
इल्लेइ  ता मी  बुनू छोवं
आवा हम दगडी चितेई जौला
गर  चितेई जौला बगत से
ता सयेद बणा  द्युन्ला
अपड़ा सुपिनो  कु "उत्तराखंड "
ता सयेद बणा  द्युन्ला
अपड़ा सुपिनो  कु "उत्तराखंड "




रचनाकार :गीतेश सिंह नेगी (सिंघापुर प्रवास से )

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रयास|

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  2. क्या आप एक उम्र कैदी का जीवन पढना पसंद करेंगे, यदि हाँ तो नीचे दिए लिंक पर पढ़ सकते है :-
    1- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post_10.html
    2- http://umraquaidi.blogspot.com/2010/10/blog-post.html

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  3. बहुत सुंदर.
    दशहरा की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनाएँ...

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  4. पराण तर्स्युं...मन हर्च्युं...प्यारू पहाड़...माँ कु मुल्क...जन भी कल्पना करा....प्यारा भै बन्धु....भाषा अर संस्कृति कु सृंगार करा.....भिन्डी क्या बोन्न तब....प्रिय गीतेश जी.... बहुत सुंदर

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