हिमालय की गोद से

हिमालय  की  गोद  से
बहुत खुबसूरत है आशियाना मेरा ,है यही स्वर्ग मेरा,मेरु मुलुक मेरु देश

Saturday, April 24, 2010

गढ़वाली गीत : म्यारु उत्तराखंड

देखि की पहाडूं यूँ , कन मन खुदै ग्ये
देखि की पहाडूं यूँ , कन मन खुदै ग्ये
माँ थेय अपड़ी बिसरी ग्यीं , ढूध  प्येकि
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,दूध प्येकि

बाँजी छीं सगोड़ी ,स्यार रगड़ बणी ग्यीं
परदेशूं मा बस ग्यीं, गढ़ देश छोड़ीकि
माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं , ढूध प्येकि
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि


रूणा छीं पुन्गडा ,खिल्याण छलै ग्यीं
रोलूयूँ मा रुमुक पडीं , ग्युइर्र हर्ची ग्यीं,
माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि

पंदेरा - गदेरा सुक्की ग्यीं ,अब रौई- रौईकि
अरे ढंडयालू बी बौलै ग्याई , धेई लग्गै लग्गैकि
माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि


बोली भाषा फूक याळ , अंगरेजी फुकी कै
अरे गौं कु पता लापता ह्वै,कुजाणि कब भट्टे
माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध प्येकि
ढोल- दमोऊ फुट ग्यीं ,म्यूजिक पोप व्हेय ग्ये
गैथा रोट्टी बिसरी ग्यीं , डोसा पिज्जा
माँ थे अपड़ी बिसरी गयीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी गयीं ,ढूध पयेई कै


रुणु च केदार खंड ,खंड मानस बोल्यै ग्ये
अखंड छौ रिश्ता जू , खंड खंड व्हेय ग्ये
माँ थे अपड़ी बिसरी ग्यीं ,ढूध पयेई कै
अरे माँ थे अपड़ी बिसरी गयीं ,ढूध पयेई कै

रूणा छीं शहीद ,शहीद "बाबा उत्तराखंडी " होए गेई
नाम धरयुं च उत्तराँचल ,कख म्यारु "उत्तराखंड " ख्वे गेय 
माँ थे अपड़ी बिसरी गयौं ,किल्लेय  तुम दूध पीयें कै
माँ थे अपड़ी बिसरी गयौं ,किल्लेय  तुम ढूध पीयें कै
माँ थे अपड़ी बिसरी गयौं ,किल्लेय  तुम ढूध पीयें कै

2 comments:

  1. These lines can be read by anyone but the deep pain is only understand by a real uttrakhandi(Son of the dev bhoomi)...... these lines are simply great and loveable

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  2. There is pain of separation in your poems.
    Your symbols create images of Garhwal-Kumaun perfectly and poems are capable to attract readers and enganging them
    Bhishma Kukreti, mumbai

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